भारत सरकार द्वारा राष्ट्रपिता महात्मागाँधी के जन्म शताब्दी वर्ष 24 सितम्बर 1969 में राष्ट्रीय सेवा योजना इस आशय के साथ प्रारम्भ की गई कि उच्च शिक्षा से जुड़े विद्यार्थियों में सामाजिक दायित्व, चेतना , स्पप्रेरित अनुशासन के साथ श्रम के प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न हो। विद्यार्थी अपने अति रिक्त समय एंव अवकाश का सदुपयोग करने हेतू समाज सेवा करें तथा अपनी शिक्षा की पूर्णता हेतु वास्तविक परिस्थितियों से साक्षात्कार भी कर सकें। जिससे उनके व्यक्तित्व का विकास हो।
मध्यप्रदेश में सन् 1969 में राष्ट्रीय सेवा योजना सर्वप्रथम प्रदेश के दो विश्वविद्यालयों में शुरू की गई एंव वर्तमान में प्रदेश के 7 विश्वविद्यालयां द्वारा इसका संचालन किया जा रहा है। साथ ही सन् 1988 में 10़2 में राष्ट्रीय सेवा योजना प्रारम्भ की गई। 1990 में मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय सेवा योजना का पाठ्यक्रम लागू किया गया जिसमें राष्ट्रीय सेवा योजना के पाठ्यक्रम को ए, बी एंव सी प्रमाण पत्र में विभक्त किया गया।
भारत सरकार, युवा कार्य एंव खेल मंत्रालय द्वारा प्रवर्तित यह योजना मध्यप्रदेश शासन, उच्च शिक्षा विभाग के नियंत्रण में विश्व विद्यालय द्वारा़ विद्यालय/उच्च शिक्षा, तकनीकी, कृषि, चिकित्सा शिक्षा की संस्थाओं में स्थापित रासेयो इकाइयों के माध्यम से चलाई जाती है।
योजना के अन्तर्गत गतिविधियों पर होने वाले व्यय की व्यवस्था केंद्र सरकार एंव राज्य शासन द्वारा 7ः5 के अनुपात में की जाती है। व्यय हेतु वित्तीय ब्यौरा निर्धारित है।
सामान्यतः एक स्वयंसेवक योजना में कम से कम 2 वर्ष तक रह कर गतिविधियों में भाग लेता है। वर्ष भर नगर अभिगृहीत ग्राम/बस्ती में नियमित गतिविधि आयोजित की जाती है। जबकि किसी गाँव में आयोजित सात दिवसीय पूर्णकालिक शिविर, विशेष शिवित होता है। इसके अतिरिक्त आवश्यकतानुसार दवा शिविर भी आयोजित किये जाते हैं।
रा.से.यो.
राष्ट्रीय सेवा योजना
समाज सेवा द्वारा विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का विकास।
राष्ट्रीय सेवा योजना का सिद्धांत वाक्य (मोटो)- ‘मैं नही आप (नाहं वै भवान्) Not me but you – यह सिद्धांत वाक्य वसुधैव कुटुम्बकम् का सार बताता है कि हम दूसरे के दृष्टिकोण की सराहना करने वाले बनें तथा प्राणी मात्र के लिये सहानुभूति रखें। इस तरह यह एक सर्वधर्म सम्भाव राष्ट्र से युक्त (प्रजातान्त्रिक) समाज के निर्माण का लक्ष्य प्रस्तुत करता है।
एन.एस. की नियमित एंव विषेश शिविर गतिविधियों में कार्य हेतु वर्ष 2011-12 के लिये विषय सार ‘‘स्वास्थ्य सार्वजनिक/व्यक्तिगत साफ सफाई‘‘ निर्धारित की गई है।
मानव सेवा एंव युवा चेतना के प्रतीक स्वामी विवेकानन्द को राष्ट्रीय सेवा योजना का प्रेरणा पुरूष मान्य किया गया है। स्वामी विवेकानंद को वर्ष 1984-85 अंतर्राष्ट्रीय युवा वर्ष के अंतर्गत भारत सरकार ने युवाओं का प्रतीक पुरूष मान्य किया तबसे ही राष्ट्रीय सेवा योजना में उन्हें अपने प्रतीक पुरूष के रूप में मान्य किया।
राष्ट्रीय सेवा योजना का प्रतीक चिन्ह उड़ीसा के कोणार्क स्थित सूर्य मन्दिर के रथ के चक्र है। सूर्य मन्दिर के ये विशाल चक्र सृजन, सरंक्षण और निर्मुक्ति के आवर्तन को अभिव्यक्त करते हैं तथा काल और स्थान से पूरे जीवन में गति का महत्व बताते हैं। प्रतीक का अभिकल्प (डिजायन) सूर्य रथ के चक्र का सरलीकृत रूप मुख्यतः गति को दर्शाता है, यह निरंतरता, समाज में परिवर्तन लाने और उसे उन्नत करने के लिये निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रयास करने का द्योतक है।
रा.से.यो. का बैज मूलतः प्रतीक चिन्ह पर आधारित है जिसमें विभिन्न रंगों का समावेश कर बैज बनाया गया है। सूर्च मंदिर में रथ में 24 पहिये हैं , प्रति पहिये में 8 तीलियाँ हैं जो 8 प्रहर दर्शाती हैं। इसलिये जो व्यक्ति इस बैज को धारण करता है उसे यह बैज याद दिलाता है कि वह राष्ट्र सेवा के लिए दिन-रात अथार्त 24 घण्टे (आठों प्रहर ) तत्पर रहे। बैज में जो लाल रंग है वह इस बात का संकेत करता है कि रा.से.यो. के स्वयं सेवकों में पूरा उत्साह है और वे जीवन्त हैं, सक्रिय हैं और उनमें स्फूर्ति है। गहरा नीला रंग उस ब्रह्माण्ड की ओर संकेत करता है जिसका रा.से.यो. एक छोटा सा अंश है और जो मानव मात्र का कल्याण करने के लिये अपना अंशदान करने को तैयार है।
1. सभी रा.से.यो. स्वयंसेवक कार्यक्रम अधिकारी द्वारा नियुक्त किये गये दलनायक के मार्गदर्शन में कार्य करेंगे।
2. दल/समुदाय के नेतृत्व के लिए वे सहयोग एंव विश्वास के पात्र बनेंगे।
3. उन्हें हर स्थिति में असामाजिक एंव अस्वच्छ कार्य कलापों से दूर रहना चाहिये।
4. वे अपनी दैनन्दिन गतिविधियों/अनुभवों को इस डायरी में सलंग्न पृष्ठों पर अभिलेख करेंगे और समय-समय पर अवलोकनार्थ प्रस्तुत करेंगे।
5. प्रत्येक स्वयंसेवक को एन.एस.एस. कार्य के समय एन.एस.एस. बैज धारण करना चाहिए।
‘‘समाज सेवा के माध्यम से व्यक्तित्व का विकास‘‘ इसके विशिष्ट उद्देश्य इस प्रकार हैं-
1. जिस बस्ती/ग्राम/समुदाय में वे कार्य करते हैं,उसे समझना।
2. बस्ती/ग्राम/समुदाय के परिपेक्ष्य में स्वंय को समझना।
3. बस्ती/ग्राम/समुदाय की उन समस्याओं एंव आवश्यकताओं की पहचान करना जिनके समाधान में वे सहभागी हो सकते हैं।
4. सामाजिक दायित्व एंव नागरिक बोध (सिविक सेंस) का विकास करना।
5. कठिनाईयों के व्यवहारिक निराकरण ढूंढने में शिक्षा एंव ज्ञान को लागू करना। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना।
6. समूह-जीवन हेतू आवश्यक गुणों का विकास करना।
7. बस्ती/ग्राम/समुदाय की सहभागिता सक्रिय करने हेतु कौशल।
8. प्रजातांत्रिक दृष्टिकोण एंव नेतृत्व के गुणों का विकास।
9. संकट एंव दैवी आपदाओं का सामना करने की क्षमता का विकास।
10. राष्ट्रीय एकता को व्यवहारिक स्वरूप देना।
एक शैक्षणिक वर्ष में 120 घण्टे का सेवा कार्य प्रत्येक स्वयं सेवक से अपेक्षित है, उसमें से प्रथम वर्ष में 20 घण्टे निम्नानुसार दिशा निर्देश कार्यक्रम पर उपयोग में लाये जावें-
सामान्य दिशा निर्देश – 02 घण्टे
विभिन्न दिशा निर्देश – 08 घण्टे
कार्यक्रम की दक्षता का ज्ञान – 10 घण्टे
योग – 20 घण्टे
दिशा निर्देश कार्यक्रम, शिक्षकों, कार्यक्षेत्र के जानकार व्यक्तियों जैसे स्थानीय विकास अधिकारियों, स्वंय-सेवी संस्थाओं तथा सामाजिक कार्य कर्ताओं एंव वरिष्ठ स्वयंसेवकों इत्यादि के सहयोग से विकसित और आयोजित किया जायेगा।
भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय सेवा योजना की नियमित एंव विशेष शिविर गतिविधियों के लिए सुझाए गए 8 कार्यक्षेत्रों को ही इस पाठ्यक्रम का आधार बनाया गया है। प्रमाण-पत्रों की श्रेणीबद्धता विभिन्न स्तर के विद्यार्थियों की क्षमता और रूचि को ध्यान में रखकर की गयी है। प्रत्येक प्रमाण-पत्र के पाठ्क्रम में चयनात्मक गतिविधियां निर्धारित की गई हैं, जिनमें से प्रत्येक समूह से कम से कम एक गतिविधि स्वंसेवक की इच्छानुसार चयन की जाएगी, ताकि विद्यार्थी का बहुविधि विकास हो सके। यह ध्यान में रखने की बात है कि एक प्रमाण -पत्र के लिए किये गए गतिविधियों का चयन अगले प्रमाण-पत्र में यथासंभव न किया जाए।
यद्यपि ‘ए‘ एंव ‘बी‘ के प्रमाण-पत्र के लिए कुल 6 क्षेत्रों से गतिविधियाँ चयन की जाएंगी, तथापि जन साक्षरता में भाग लेने वाले स्वयंसेवकों को यह छूट होगी कि वे चयनात्मक समूहों में से तीन गतिविधियों का ही चहन करें।
‘ए‘ प्रमाण पत्र यह प्रमाण-पत्र स्कूल स्तर पर कक्षाओं में अध्यनरत रासेयो स्वयंसेवकों द्वारा प्रतिवर्ष 120 घण्टे के हिसाब से 2 वर्ष में 240 घण्टे का पाठ्यक्रम सेवाकार्य करने के उपरांत, मूल्यांकन में सफल हो कर प्राप्त किया जा सकता है। अनिवार्य गतिविधियों के अतिरिक्त प्रत्येक स्वंयसेवक को भाग-1 के प्रत्येक समूह से कम से कम एक ऐच्छिक गतिविधि का चयन कर कार्य करना होगा। इस प्राकार वह 2 वर्षों में 12 गतिविधियों के क्षेत्रों में कम से कम 240 घण्टे सेवा कार्य करेगा।
‘बी‘ प्रमाण-पत्र इस प्रमाण पत्र के लिए महाविद्यालय/डाइट/पोलिटेक्निक के उपाधि/पत्रोपाधि/स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में अध्ययनरत रासेयो स्वयंसेवक कार्य करें। ‘ए‘ प्रामण-पत्र धारी स्वयंसेवक अनिवार्य गतिविधियों के अतिरिक्त भाग-2 के प्रत्येक समूह में से एक गतिविधि का चयन कर कार्य करेगा और इस प्रकार एक वर्ष में 6 गतिविधियों के क्षेत्र में कार्य करेगा। जो स्वयंसेवक ‘ए‘ प्रमाण-पत्र धारी नहीं हैं वह रासेयो के प्रथम वर्ष में अनिवार्य गतिविधियों के अतिरिक्त भाग-1 के प्रत्येक समूह से एक गतिविधि का चयन कर कार्य करेगा तथा रासेयो के द्वितीय वर्ष में अनिवार्य गतिविधियों के अतिरिक्त भाग-2 के प्रत्येक समूह से एक गतिविधि का चरन कर कार्य करेगा।
‘सी‘ प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए स्वयंसेवक को ‘बी‘ प्रमाण-पत्र धारी तथा कम-से-कम एक सात दिवसीय पूर्ण कालिक शिविर का अनुभव होना आवश्यक है। स्वयंसेवक अनिवार्य गतिविधियों के अतिरिक्त पाठ्यक्रम की चयनात्मक गतिविधियों के प्रत्येक समह से कम से कम एक गतिविधि पर कार्य करेगा तथा स्वयं के द्वारा किये गए कार्य के अनुभव एंव सामाजिक प्रासंगितकता से सम्बन्धित उसके द्वारा प्रस्तुत विषय पर संस्था की रासेयो सलाहकार समिति द्वारा अनुमोदनोपरान्त, वह 20-30 टंकित पृष्ठों की प्रोजेक्ट-रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। इसका मूल्यांकन विश्वविद्यालय स्तर पर होगा तथा एक समिति द्वारा स्वयंसेवक का व्यक्तित्व परीक्षण किया जायेगा।